किडनी प्रत्यारोपण प्रक्रिया में रोबोटिक सर्जरी का विकास
पिछले 45 वर्षों में, भारत का जीवित किडनी प्रत्यारोपण क्षेत्र में काफ़ी विकास हुआ है और अब यह किडनी प्रत्यारोपण भागीदारों की दृष्टि में संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा कार्यक्रम है। 1995 से, जब भारतीय संसद ने प्रत्यारोपण से संबंधित कानून बनाया, तब से मृत दाता से अंग प्रत्यारोपण प्राप्त करने की अनुमति दी गई है जब मृत्यु का निर्धारण करने के लिए न्यूरोलॉजिकल मानदंडों का उपयोग किया जाता है। ऐसा माना गया है कि वैश्विक रूप से, क्रोनिक किडनी रोग लगभग 735,000 वार्षिक मृत्यु का कारण बनता है। भारत में प्रत्येक एक मिलियन लोगों में अंतिम चरण की गुर्दे की बीमारी (end-stage renal disease) के 151 से 232 मामले ऐसे होते हैं जिनके लिए प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती हैं।
एक अनुमान के अनुसार, भारत में यदि इन आँकड़ों का औसत निकाला जाए, तो 220,000 से अधिक लोगों को किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता है। हालांकि, उसके बावजूद, केवल 7500 किडनी प्रत्यारोपण किए जाते हैं। आज के समय में, केवल 10% प्रत्यारोपित किडनी मृतक दाताओं से आती है और 90% जीवित दाताओं से आती है।
बदलते समय के साथ, एक क्रांतिकारी खोज रोबोटिक किडनी प्रत्यारोपण के साथ-साथ लैपरोस्कोपिक दाता नेफ्रेक्टमी की सेवा देने वाले प्रत्यारोपण अस्पतालों में काफ़ी प्रगतिशील उन्नति प्राप्त की है।
तो फिर इस अद्वितीय आविष्कार की मानव जगत को सबसे बड़ी भेंट क्या है? किडनी प्रत्यारोपण के बाद के सर्जिकल और चिकित्सकीय जटिलताओं का भी अब काफ़ी समाधान हुआ है। इस मिनिमल इंवेसिव सर्जरी के लाभ को रोबोटिक किडनी प्रत्यारोपण (आरकेटी) के माध्यम से किडनी प्रत्यारोपण के क्षेत्र तक काफ़ी फैलाया गया है। इसके व्यापक उपयोग को साबित करने और सुरक्षित और कुशल आविष्कार की गारंटी देने के लिए विश्वभर में विभिन्न तकनीकें उपलब्ध है, और जिन्हें साक्ष्य-आधारित ढांचे के भीतर मानकीकरण की आवश्यकता है।
जब बात मेदांता की आती है, हम मरीज़ के लाभ के लिए हर रास्ता की खोज करते हैं! हमारा किडनी और यूरोलॉजी संस्थान की स्थापना दो विश्वविख्यात डॉक्टर- डॉ. राजेश अहलावत, डॉ. विजय खेर और उनके नेतृत्व में कुशल यूरोलॉजिस्ट्स और नेफ्रोलॉजिस्ट्स की टीम द्वारा की गई थी। इंस्टिट्यूट की स्थापना के बाद, संस्थान दा विंची रोबोट सहित आधुनिक प्रौद्योगिकी की सहायता से व्यक्तिगत रूप से मरीज का सटीक इलाज प्रदान करते आये हैं। मेदांता की विशेषज्ञ टीम ने 2500 से अधिक रोबोटिक प्रक्रियाएँ और 2000 किडनी प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किए हैं। सन् 2000 के बाद, सभी डोनर नेफ्रेक्टोमी के लिए लैपरोस्कोपिक सर्जरी का उपयोग किया जा रहा है। किडनी प्रत्यारोपण के मरीजों में मिनिमल इंवेसिव सर्जरी के लाभ को बढ़ाने के लिए किडनी प्रत्यारोपण प्रक्रिया की सर्जिकल योग्यता के साथ दा विंची रोबोट तकनीक का उपयोग किया गया था।
2012 में, गुरुग्राम के मेदांता किडनी और यूरोलॉजी संस्थान और डेट्रॉइट, यूएसए के हेनरी फोर्ड हॉस्पिटल के वाटिकुटी यूरोलॉजी संस्थान के वैज्ञानिकों ने मिलकर रोबोटिक किडनी प्रत्यारोपण की परिकल्पना विकसित की थी। आईडीईएल मानकों के संदर्भ में चरण 0 (शवों पर पूर्व-वैद्यकीय अनुसंधान), चरण 1 और चरण 2 परीक्षण सफलतापूर्वक किए गए, जो इस प्रक्रिया की लाभदायकता और सुरक्षा का प्रमाण देते हैं। मरीज को अधिकतम लाभ पहुँचाते रहने के लिए प्रक्रिया को निरंतर सुधारा जा रहा है। रोबोट की सहायता से प्रत्यारोपित करते समय किडनी को ठंडे रखने के लिए नरम बर्फ का उपयोग करने वाली हाइपोथर्मिया तकनीक का आविष्कार करना एक महत्वपूर्ण आविष्कार था। नरम बर्फ के साथ क्षेत्रीय हाइपोथर्मिया ने खुले किडनी प्रत्यारोपण की तुलना में किडनी की कार्यक्षमता में काफ़ी सुधार किया। प्रत्यारोपण के बाद के समय के दौरान ग्राफ्ट को ठीक करने और उन्हें परक्यूटेनियस बायोप्सी के लिए उपलब्ध करने के लिए एक ओर तकनीक विकसित की गई। इसके परिणामस्वरूप, कई विश्वभर में समीक्षित जर्नलों में इसके परिणाम प्रकाशित हुए।
हमारे विशेषज्ञ, डॉक्टर अहलावत ने रोबोटिक किडनी प्रत्यारोपण कार्यक्रम की शुरुआत की है और पिछले कुछ वर्षों में इसका प्रदर्शन कई अंतरराष्ट्रीय और भारतीय मंचों पर किया है। कई व्यक्तियों ने जिन्होंने किडनी प्रत्यारोपण प्राप्त किया है, उन्होंने इस तकनीक की व्यापक स्वीकृति और अच्छे परिणामों से लाभ उठाया है। इससे प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप होने वाली जटिलताओं में भी कमी आई है। रोबोटिक सर्जरी में, रोबोटिक प्रौद्योगिकी शल्य चिकित्सक के हाथ की गतिविधियों की नकल कर रोगी के शरीर के अंदर छोटे उपकरणों की सटीक गतियों का उपयोग करते हैं। अद्वितीय कैमरा बढ़ा हुआ आवर्धन और 3डी दृष्टि प्रदान करता है, जो शल्य विशेषज्ञ के लिए सर्जिकल क्षेत्र की दृश्यता को बेहतर बनाता है और उनके लिए सटीकता और सूक्ष्मता को बढ़ाता है, जो प्रणाली पर पूर्ण नियंत्रण बनाए रखता है।
हम गर्व से घोषित करते हैं कि मेदांता के हमारे विशेषज्ञ टीम ने लगभग 300 रोबोटिक किडनी प्रत्यारोपण को सफलतापूर्वक पूरा किया है। एक साल के फॉलो-अप से प्राप्त डेटा के अनुसार, ग्राफ्ट सर्वाइवल दर 93.6% है जबकि रोगी की सर्वाइवल दर 95% है। रिपोर्ट के अनुसार मृत्यु-सेंसर ग्राफ्ट सर्वाइवल दर 98.6% है। साथ ही, दुष्प्रभावों, रक्त हानि, और दर्द के कम खतरे के साथ, यह उपचार सुरक्षित सिद्ध हुआ है। ग्राफ्ट प्रत्यारोपण का प्रदर्शन एक ओपन किडनी प्रत्यारोपण के समान ही रहा है, और इसके परिणामस्वरूप मरीज़ों में जल्दी रिकवरी और डिस्चार्ज हुआ है।
This blog is a Hindi version of an English-written Blog - Evolution of robotic surgery in kidney transplant