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गुर्दे के रोग - निदान एवं इलाज

गुर्दे के रोग - निदान एवं इलाज

किडनी और उनके कार्य:

किडनी पीठ की हड्डी के दोनों ओर सेम के आकार के अंग होते हैं, जो कमर के स्तर से थोड़े ऊपर स्थित होते हैं। सामान्यत: व्यक्ति के शरीर में दो गुर्दे होते हैं, हालांकि हर 5000 में से 1 व्यक्ति के पास केवल एक किडनी ही होती है, और यदि यह गुर्दा अच्छी तरह से काम कर रहा है तो व्यक्ति इस पर जीवनभर निर्भर रह सकता है, इसका अर्थ है कि केवल एक गुर्दा जीवन के लिए पर्याप्त है। प्रत्येक गुर्दे में लगभग 1 मिलियन नेफ्रॉन नामक फ़िल्टरिंग इकाइयाँ होती हैं और वे शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्य करती हैं।

गुर्दे के कुछ सबसे महत्वपूर्ण कार्य हैं:

  • शरीर से यूरिया, क्रिएटिनाइन, पोटैशियम, फास्फोरस और कई अन्य अनुपयोगी पदार्थों को निकालना। 
  • रक्तचाप नियंत्रण, क्योंकि गुर्दा अतिरिक्त नमक निकालता है और रेनिन नामक हार्मोन का उत्पादन करता है, ये दोनों बीपी नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है। 
  • फ्लूइड नियंत्रण, क्योंकि गुर्दे अतिरिक्त तरल पदार्थों को हटाते हैं। गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों में यह तरल पदार्थ शरीर में जमा होता है, जिससे सूजन होती है। 
  • मेटाबोलिज्म के दौरान शरीर में उत्पन्न होने वाले एम्ल को हटाना। 
  • रक्त का निर्माण में मुख्य योगदान देने वाले एरीथ्रोपोएटिन नामक हॉर्मोन का निर्माण करना, विटामिन डी के सक्रिय रूप का निर्माण में भूमिका निभा कर हमारी हड्डियों को स्वस्थ रखना


किडनी रोगों के प्रकार:

गुर्दे में मुख्य रूप से 2 प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, जो उनके उत्पत्ति के अनुसार वर्गीकृत की जाती है। गुर्दे की कुछ बीमारियाँ पूर्ण रूप से ठीक हो सकती हैं इसलिए इनका समय पर निदान और सही उपचार आवश्यक होता है। 

a.  गुर्दे की एक्यूट बीमारी (एकेआई): यदि गुर्दे पिछले कुछ दिनों या घंटो में काम करना बंद कर देते हैं तो इसे एक्यूट किडनी डिजीस (एकेआई) कहा जाता है। एकेआई के सबसे सामान्य कारण हैं:

  • शरीर से तरल या रक्त की तेजी से हानि होना जैसे की गंभीर डिहाइड्रेशन, डायरिया, और अत्यधिक रक्तस्राव में दिल्हा जा सकता है। 
  • जहरीले पदार्थ का सेवन और साँप का काटना 
  • गंभीर संक्रमण या हार्ट फेलियर जो शॉक (कम रक्तचाप) के कारण गुर्दे के रक्त प्रवाह को कम करके गुर्दे की मूत्र निर्माण की क्षमता को निम्नतम स्तर पर ले जाता है। 
  • कुछ दवाओं जैसे की दर्द-निवारक, कुछ एंटीबायोटिक्स जैसे की अमिनोग्लाइकोसाइड्स का सेवन या कुछ ऐसी जड़ी बूटियां जिनमें भारी धातु होती हैं एक्यूट किडनी डिजीस का कारण हो सकती हैं। 
  • पैंक्रिअटिटिस या लिवर फेलियर जैसी बीमारियां 

जब गुर्दे में इन कारणों में से किसी एक कारण के कारण एकेआई विकसित होता है तो गुर्दे के सामान्य होने में लगभग 2-4 सप्ताह लगते हैं। एकेआई का उपचार उसके कारण के इलाज पर निर्भर करता है, जैसे की संक्रमण, रक्तस्राव आदि। एकेआई से ग्रसित लगभग नब्बे प्रतिशत लोग ठीक हो जाते हैं। गुर्दे के पूरी तरह ठीक होने तक कई रोगियों में किडनी डायलिसिस की आवश्यकता हो सकती है।


b. क्रोनिक किडनी डिजीस (सीकेडी): लगभग 3 महीने से अधिक समय तक गुर्दे की कार्यक्षमता का धीरे-धीरे नुकसान होने से गुर्दे की क्रोनिक बीमारी (सीकेडी) उत्पन्न होती है। यह अब एक बहुत सामान्य बीमारी बनती जा रही है। विश्व-भर में लगभग 10-15% लोगों को विभिन्न ग्रेडों की सीकेडी होने का अनुमान लगाया जाता है। हालांकि इनमें से अधिकांश लोग सीकेडी के प्रारंभिक चरण से पीड़ित होते हैं और केवल लगभग 0.5-1% रोगीयों में सीकेडी के उन्नत चरण में दिखता है। जब गुर्दे की कार्यक्षमता <15% तक ही रह जाती है तो इसे स्टेज 5 सीकेडी या किडनी फेलियर कहा जाता है और इस चरण में व्यक्ति को सामान्यत: डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। सीकेडी विश्व-भर में मृत्यु का 12वां सबसे सामान्य कारण है।

सीकेडी के सामान्य कारण हैं:

  • मधुमेह (डायबिटीज): 30-40% 
  • उच्च रक्तचाप (एचटीएन): 15-20% 
  • ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस: गुर्दे से प्रोटीन निकलना 
  • इंटरस्टीशियल नेफ्राइटिस: विभिन्न विषैले पदार्थों, दवाओं, संक्रमण, गुर्दे की पथरी, मूत्र संबंधित समस्याएँ जैसे की प्रोस्टेट बढ़ने आदि के कारण होने वाली स्थिति 
  • ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज (एडीपीकेडी): एक ऐसी  स्थिति जिसमें गुर्दे में बहुत सारे सिस्ट (पानी की थैलियां) बनती हैं। ये जीनेटिक दोष के कारण होती है और और सामान्यत: एक पीढ़ी से दूसरी में चलती हैं। सीकेडी के 5% मरीज़ों में ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज (एडीपीकेडी) होती है 
  • ऑटोइम्म्यून बीमारियां जैसे की एसएलई, वास्क्यूलाइटिस 

मधुमेह और उच्च रक्तचाप सीकेडी के सबसे सामान्य कारण हैं। चूँकि डायबिटीज और उच्च रक्तचाप सामान्य जनसंख्या में बढ़ रहे हैं, इसलिए गुर्दे की बीमारियाँ भी बढ़ रही हैं। इसके अलावा कुछ अन्य कारक जैसे की धूम्रपान, मोटापा, वृद्धावस्था और गुर्दे की बीमारियों का पारिवारिक इतिहास गुर्दे की बीमारी होने का जोखिम बढ़ाते हैं।


गुर्दे की बीमारी के लक्षण और संकेत:

शुरुआती चरण में, बहुत से रोगियों में कोई भी लक्षण महसूस नहीं होते हैं जिससे बीमारी का पता नहीं पड़ता और यह बढ़कर अंतिम चरण में पहुँच जाती है जिस स्थिति में डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। यह समस्या अक्सर तब पता चलती है जब किन्ही अन्य कारणों (विशेषकर मधुमेह या उच्च रक्तचाप वाले रोगियों में) के लिए खून या मूत्र परीक्षण किया जाता है। सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं:

  • पैरों, टखनों और टांगों में सूजन आना 
  • मूत्र-संबंधी लक्षण जैसे- अत्यधिक फोमिंग (मूत्र में प्रोटीन), मूत्र में रक्त (हेमेट्यूरिया), रात्रि में अत्यधिक मूत्र निकलना, मूत्र निकलने में कमी आदि
  • दवाइयों के बावजूद रक्तचाप नियंत्रित न होना 
  • हीमोग्लोबिन की कमी (एनीमिया)
  • बच्चों में हड्डियों से संबंधित लक्षण जैसे घुटनों का झुकाव, रिकेट्स आदि
  • बच्चों में उम्र के अनुसार वृद्धि न होना 
  • लंबे समय तक मधुमेह वाले रोगियों में पूर्ण सावधानी के बावजूद ब्लड शुगर का कम रहना 

अंतिम चरण में गुर्दे की बीमारी के रोगी में निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते हैं:

  • भूख की कमी, मतली, उल्टी, वजन कमी, त्वचा में खुजली, सूखापन, और स्वाद में परिवर्तन।
  • सांस लेने में कठिनाई, मानसिक स्थिति में परिवर्तन, दौरे पड़ना और अवसाद, यदि उपचार नहीं किया जाता है।


गुर्दे की बीमारी की समय पर पहचान:

गुर्दे की बीमारी को शुरुआती चरण में दो सरल परीक्षणों से पहचाना जा सकता है:

  • अल्ब्यूमिन/प्रोटीन के लिए मूत्र परीक्षण: यह एक साधारण डिपस्टिक या प्रयोगशाला में मूत्र परीक्षण द्वारा किया जा सकता है। यदि मूत्र में एल्ब्यूमिन निकलने की मात्रा >30 मिलीग्राम/दिन है या मूत्र में प्रोटीन निकलने की मात्रा > 200 मिलीग्राम/दिन है तो व्यक्ति को नेफ्रोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए।
  • सीरम क्रिएटिनिन: गुर्दे की कार्यक्षमता का अनुमान लगाने के लिए यह दूसरा परीक्षण है, जो रक्त के माध्यम से किया जाता है; हालांकि क्रिएटिनाइन की मात्रा केवल तब बढ़ती है जब गुर्दे की कार्यक्षमता 50% से कम होती है। सीरम क्रिएटिनिन का सामान्य स्तर 0.6- 1.3 मिलीग्राम/डीएल है।

मधुमेह, उच्च रक्तचाप और गुर्दे की बीमारी के पारिवारिक इतिहास वाले गुर्दे की बीमारी के उच्च जोखिम वाले रोगियों को वार्षिक रूप से इन परीक्षणों को करवाना चाहिए।


गुर्दे की बीमारी के अन्य परीक्षण:

  • किडनी का अल्ट्रासाउंड: यह टेस्ट गुर्दे के आकार, गुर्दे में कोई सिस्ट, पथरी, या किसी प्रकार की बाधा आदि का पता लगाने में मदद करता है। सीकेडी वाले रोगियों में गुर्दे लम्बी बीमारी के कारण आमतौर पर छोटे होते हैं और यह बीमारी के वापिस ठीक होने में असमर्थता को दर्शाता है, हालांकि मधुमेह वाले रोगियों में गुर्दे की कार्यक्षमता में कमी के बावजूद भी गुर्दे सामान्य आकार में रह सकते हैं और वंशानुगत एडीपीकेडी में, गुर्दे बड़े होते हैं।
  • गुर्दे की बायोप्सी: किडनी बायोप्सी में, एक सुई के माध्यम से गुर्दे के एक छोटे से टुकड़े को निकाल कर माइक्रोस्कोप से जाँचा जाता है। बायोप्सी गुर्दे की बीमारी के कारण का निदान करने में मदद करती है, जो गुर्दे की सही उपचार के लिए मददगार है। हालांकि गुर्दे की बायोप्सी केवल तब उपयोगी होती है जब गुर्दे का आकार सामान्य हो और गुर्दे की बीमारी केवल कुछ समय से ही हो, जैसे की एसएलई,, वास्कुलाइटिस, नेफ्रोटिक सिंड्रोम, ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस आदि।
  • अन्य परीक्षण: सीटी स्कैन, एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडी (एएनसीए), एंटीन्यूट्रोफिलिक साइटोप्लास्मिक एंटीबॉडी (एएनसीए), कम्प्लीमेंट स्तर आदि परीक्षण कुछ रोगियों में आवश्यक हो सकते हैं।


गुर्दे की बीमारी का प्रबंधन:

गुर्दे की बीमारी का प्रबंधन नेफ्रोलॉजिस्ट के साथ सलाह के साथ किया जाना चाहिए, जो गुर्दे की बीमारियों में विशेषज्ञ हैं। नेफ्रोलॉजिस्ट के पास जल्दी जाने से गुर्दे की बीमारी के संबंधित संकटों के विकसित होने की संभावना कम होती है और गुर्दे की बीमारी की प्रगति भी धीमी हो सकती है।

  • उच्च रक्तचाप: गुर्दे की बीमारी वाले अधिकतर रोगियों में उच्च रक्तचाप होता है। गुर्दे की बीमारी वाले सभी रोगियों में बीपी को < 130/80 बनाए रखना चाहिए, और यह गुर्दे की बीमारी की प्रगति को धीमी करने का सबसे महत्वपूर्ण कारक माना गया है।
  • एनीमिया (कम हीमोग्लोबिन): बहुत से कारकों के कारण गुर्दे की बीमारी में एनीमिया की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, हालांकि अधिकांश रोगियों में यह गुर्दे द्वारा उत्पन्न होने वाले हार्मोन एरिथ्रोपोएटिन की कमी के कारण होती है। अन्य कारण हैं- लोहे की कमी, संक्रमण, रक्त कोशिकाओं की अवधि में कमी आदि। एनीमिया को सही करने के लिए, रोगी को अक्सर आयरन और अन्य पोषण सप्लीमेंट और बहुत से रोगियों में सिंथेटिक एरिथ्रोपोएटिन हार्मोन की आवश्यकता होती है।
  • आहार परिवर्तन: सीकेडी की कुछ जटिलताओं को नियंत्रित करने के लिए आहार में परिवर्तन की सलाह दी जाती है; सीकेडी की प्रगति को धीमा करने के लिए नमक का कम सेवन (जो रक्तचाप को कम करता है) और कम प्रोटीन वाला आहार सबसे महत्वपूर्ण है।
  • अन्य दवाओं और जीवनशैली में परिवर्तन:
  • उच्च ट्राइग्लिसराइड और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियमित करने के लिए दवाएँ
  • धूम्रपान बंद करने से गुर्दे की बीमारी की प्रगति को धीमा करने में मदद मिलती है
  • वजन कम करना (मोटापे से ग्रस्त होने पर)
  • मधुमेह से पीड़ित लोगों में रक्त शर्करा पर सख्त नियंत्रण- HbA1C लगभग 7%
  • फ़ॉस्फ़ोरस के स्तर को कम करने के लिए दवाएँ, विटामिन डी सप्लीमेंट्स और  आवश्यकतानुसार गुर्दे की बीमारियों के लिए दवाएँ।
  • वैक्सीनेशन - गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों के लिए हेपेटाइटिस बी, न्यूमोनिया और इंफ्लुएंजा के लिए टीकाकरण की सलाह दी जाती है।


गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों के लिए दवाएँ जिनसे बचना चाहिए: 

  • कुछ दर्द-निवारक जिन्हें गैर स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (एनएसएआईडी) कहा जाता है - जैसे कि ब्रूफेन, कॉम्बिफ्लेम, वोवेरॉन, निमेसुलाइड आदि के सेवन से बचना चाहिए, क्योंकि ये दवाएँ किडनी के रक्त प्रवाह को कम कर सकती हैं और उन को नुकसान पहुंचा सकती हैं। गुर्दों के लिए सुरक्षित दर्द-निवारक- पैरासीटोमोल, ट्रैमोल्डोल और ओपियड्स, डॉक्टर से परामर्श के बाद आप ले सकते हैं।
  • कुछ एंटीबायोटिक्स जैसे अमिनोग्लाइकोसाइड्स जैसे अमिकेसिन, जेंटामाइसिन आदि और पॉलिमिक्सिन समूह की दवाओं के सेवन से बचना चाहिए। हालांकि कभी-कभी गंभीर संक्रमणों में, गुर्दे की बीमारी में भी रोगी की जान बचाने के लिए इन दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
  • कुछ जड़ी-बूटियों का उपयोग गुर्दे को नुकसान पहुंचा सकता है (चीनी जड़ी-बूटियां और भारी धातु-युक्त आयुर्वेदिक दवाएँ)। दुर्भाग्यवश, हम सभी आयुर्वेदिक दवाओं के सभी प्रभावों के बारे में जागरूक नहीं हैं, इसलिए गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों को सभी हर्बल दवाओं से बचने की सलाह दी जाती है।

This blog is a Hindi version of an English-written Blog - Kidney Diseases - Diagnosis & Management

Dr. Shyam Bihari Bansal
Renal Care
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