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मिथक का अंत: कपिंग और कॉइनिंग

मिथक का अंत: कपिंग और कॉइनिंग

कपिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें ग्लास या प्लास्टिक के कई कप को शरीर के उस भाग पर दबाया जाता है जिसमें कुछ असुविधा हो रही है। इस विधि में ताप या सक्शन लगाकर एक निर्वात (वैक्यूम) उत्पन्न किया जाता है। इस सक्शन से बड़े-बड़े नील-जैसे निशान बन जाते हैं। पहले इस तकनीक का उपयोग त्वचा पर बने फोड़ों से रक्त और पस निकालकर फोड़ों को ठीक करने में किया गया था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसके उपयोग का दायरा बढ़ गया है और अब यह ट्यूबरक्लोसिस और गठिया जैसी बीमारियों के इलाज में भी काम आता है।

 

कपिंग पहले तो मुख्य रूप से चीनी संस्कृति का हिस्सा था, जो आधुनिक चीनी चिकित्सकों को विरासत में मिला था। वर्तमान में, यह चीन के अस्पतालों में एक स्थापित चिकित्सीय अभ्यास बन चुका है।

 

एक और समान सांस्कृतिक उपचार विधि है कॉइनिंग। यह विधि भी उसी सिद्धांत पर काम करती है, इसमें एक बड़ी धातु की डिस्क जिसमें एक हैंडल जुड़ा होता है, उसे प्रभावित क्षेत्र पर दबाया जाता है। हालांकि कॉइनिंग को बाकी दुनिया में ज्यादा नहीं जाना जाता है और डॉक्टर द्वारा इसे एक सांस्कृतिक मिथ्या के रूप में खारिज किया जाता है, फिर भी यह चीन, कंबोडिया, वियतनाम और म्यांमार जगहों पर बुखार, क्षय रोग, रूमेटिज़म और मांसपेशियों के दर्द जैसी बीमारियों का इलाज करने के लिए इसका आमतौर पर अभ्यास किया जाता है।

 

कॉ जिओ (कॉइनिंग) का अभ्यास:

 

गुआ शा या कॉइनिंग का मतलब "स्क्रैपिंग या नील पड़ना" होता है। इसे काओ जियो भी कहा जा सकता है, जिसका मतलब होता है "हवा को पकड़ना" यह उपचार विधि विभिन्न दक्षिण-पूर्व एशियाई संस्कृतियों में चिकित्सा का अभिन्न हिस्सा मानी जाती है। यह सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए लोकप्रिय घरेलू उपचार है।

 

इसे कैसे किया जाता है?

 

इस विधि के लिए आमतौर पर निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता हैं:

  1. a) त्वचा पर सबसे पहले तेल का उपयोग करके चिकना किया जाता है। वे गर्म मलहम का काम करते है, जिसमें औषधियों, कैम्फर, मेंथॉल, विंटरग्रीन, यूकलिप्टस, पेपरमिंट, या दालचीनी तेल शामिल होता है।
  2. b) फिर कमर, पसलियों या सिर की त्वचा को एक सेरामिक चम्मच, पुराना सिक्का या धातु की टोपी से 15-20 मिनट तक एक रैखिक तरीके से जोर से खुरचा जाता है।
  3. c) यह मालिश तब तक की जाती है जब तक त्वचा पर स्पष्ट लालिमा नहीं जाती।
  4. d) इसके परिणामस्वरूप लम्बे नील (bruise) बनते है जिन्हें संतुलन, उत्तेजित रक्त संचालन और स्वास्थ्य की बहाली का संकेत माना जाता है। चीनी फिलोसफी के यिन और यांग का संतुलन नकारात्मक और सकारात्मक परस्पर क्रिया करने वाली शक्तियों के संतुलन को सूचित करते हैं, जो ब्रह्मांड के सामंजस्य को बनाए रखने में मदद करते हैं। इस उपचार की सफलता या शरीर से बुरे "हवा" को दूर करने की सफलता इसके बाद उपचार के बाद दिखाई देने वाली लालिमा के डिग्री द्वारा निर्धारित होती है।
  5. e) निशानों का रंग उपस्थित बीमारी की गंभीरता को दर्शाता है।
  6. f) कॉइनिंग के कारण होने वाली मामूली जलन, घर्षण, और नील को ठीक होने में कुछ दिन लगेंगे।

 

यह क्यों की जाती है?

 

कॉइनिंग का उपयोग श्वसन प्रणाली, त्वचा, या मांसपेशियों से संबंधित बहुत सारे लक्षणों के उपचार के लिए किया जाता है, जैसे खांसी, ठंड, बुखार या सिरदर्द।

कॉइनिंग का उपयोग बच्चों और शिशुओं में अनियंत्रित रोने को रोकने के लिए भी किया जा सकता है।

कॉइनिंग को शारीरिक दर्द को दूर करने जैसे लाभों के लिए कपिंग के साथ भी मिलाया किया जा सकता है।

 

ड्राई और वेट कपिंग का अभ्यास:

 

कपिंग एक प्राचीन चिकित्सा विधि है जिसका इतिहास 3000 ईसा पूर्व समय में भी मिला है। हाल ही में लोगों ने इस उपचार में आश्चर्यजनक रुचि दिखानी शुरू की है, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान में विभिन्न उपयोगों के लिए इसका अभ्यास फिर से शुरू हुआ है। दर्द के इलाज में कपिंग को केवल प्रशिक्षित मालिश करने वालों या शारीरिक चिकित्सकों से ही करना चाहिए।

 

यह कैसे किया जाता है?

 

सुखी त्वचा पर कांच, बांस, या मिट्टी के बने गोलाकार सक्शन कप को लगाया जाता है और एक नील या हेमटोमा पैदा करने वाला सक्शन बनाया जाता है। इस सक्शन को बनाने के लिए कई तरीके उपलब्ध हैं, जिसमें शामिल हैं:

  • पारंपरिक तकनीक में, कप के अंदर मौजूद हवा को एल्कोहल, जड़ी-बूटी, या कागज आदि से शुरू की गई आग की मदद से गर्म किया जाता है। जब आग बुझ जाती है, तो कप को रोगी की त्वचा पर लगभग 5-10 मिनट तक रखा जाता है। कप के अंदर की हवा ठंडी होने पर एक वैक्यूम बनाती है, जिसके कारण रक्त वाहिकाएँ फैल जाती हैं।
  • एक अन्य आधुनिक तरीके में वैक्यूम सक्शन बनाने के लिए रबर पंप का उपयोग किया जाता है।
  • वेट कपिंग में 3 मिनट का सक्शन करने के बाद सक्शन क्षेत्र की त्वचा की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे चीरे लगाए जाते हैं, और फिर शरीर में उपस्थित टॉक्सिन या हानिकारक पदार्थों को निकालने के लिए थोड़ी मात्रा में रक्त निकालने के लिए दूसरा सक्शन किया जाता है। बाद में, इन चीरों पर एंटीबायोटिक मरहम और पट्टियाँ लगाई जाती हैं, जिन्हें ठीक होने में लगभग 10 दिन का समय लगता है।
  • एक और सक्शन बनाने का तरीका है, जिसमें सिलिकॉन कप का उपयोग किया जाता है, जिन्हें मालिश की तरह त्वचा पर लगातार घुमाया जाता है।

कपिंग के दुष्प्रभाव हो सकते हैं, खासकर चीरा लगाने वाली तकनीक में, जिसमें अनेक प्रकार की असुविधाएं, जलन, नील पड़ना, और संक्रमण जैसी समस्याएँ शामिल हो सकती हैं।

 

इसे क्यों किया जाता है?

 

कपिंग का उपयोग विभिन्न दर्द, विशेष रूप से कमर के निचले हिस्से के पुराने दर्द के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जाता है। विभिन्न शोध अध्ययनों के अनुसार कपिंग से मुंहासे, सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस, कैंसर का दर्द, ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया, ब्रैकियाल्जिया, कार्पल टनल सिंड्रोम और हर्पीस ज़ोस्टर जैसी समस्याओं का उपचार किया जा सकता है। हालांकि औषधीय उपचार की तुलना में अनुसंधान इसकी प्रभावकारिता निर्धारित नहीं कर सकते, परंतु फिर भी यह एक बहुत ही लोकप्रिय चिकित्सीय अभ्यास है।

 

निष्कर्ष

 

कपिंग और कोइनिंग इतनी सदियों से प्रसिद्ध हैं कि यह दक्षिण-पूर्व एशियाई लोगों की सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। इसलिए, इन उपचार प्रक्रियाओं को चिकित्सा इतिहास से कहीं ज्यादा की आवश्यकता हैं, वे सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील रोगी देखभाल की मांग करते हैं, जिससे बहुसांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के उपचार के साथ-साथ इनसे संबंधी भ्रांतियों को कम करने के लिए विचारों को संप्रेषित करना और भरोसा बनाने के कदम उठाएँ जाएं। ऐसे पारस्परिक सांस्कृतिक जागरूकता प्रशिक्षण और नर्सिंग स्कूल के कार्यकर्ताओं के लिए सेवा शिक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसके साथ-साथ यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि सभी रोगी ऐसे उपचार करने के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं, जैसे उच्च रक्तचाप या हृदय समस्याओं वाले व्यक्तियों के लिए यह हानिकारक हो सकते हैं।

 

This blog is a Hindi version of an English-written Blog - Mythbuster:Cupping and Coining

Dr. Sakshi Manchanda
Internal Medicine
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