पार्किंसंस रोग: लक्षण, कारण और कुछ उपचार
पार्किंसंस रोग एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जो दिमाग के एक हिस्से में न्यूरॉन्स के एक छोटे से समूह को प्रभावित करती है। इस न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर में मांसपेशियों के नियंत्रण, संतुलन और गतिशीलता पर असर पड़ता है। साथ ही यह इंद्रियों, सोचने की क्षमता, मानसिक स्वास्थ्य और आपके जीवन के अन्य पहलुओं को भी प्रभावित कर सकता है।
आज तक पार्किंसंस रोग का सही कारण नहीं जाना जा सका है और ना ही कोई इलाज ईजाद किया जा सका है। लेकिन इसके लक्षणों पर ध्यान देते हुए आप कुछ बदलाव कर सकते हैं जो आपकी जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए अच्छे साबित हो सकते हैं। पार्किंसंस घातक नहीं है, लेकिन यह रोग कई अन्य तरह की गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकता है।
पार्किंसंस रोग के लक्षण:
पार्किंसंस रोग के लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं और यह हर किसी के लिए अलग हो सकते हैं। इसके कुछ शुरुआती लक्षण हाथ कांपना और शरीर में कठोरता हैं। कुछ लोगों में इस रोग की शुरुआत के साथ ही डिमेंशिया भी विकसित हो जाता है। यह रोग पहले शरीर के एक हिस्से को प्रभावित करता है और इसके आरंभिक लक्षण काफी कम होते हैं, जिससे कभी-कभी इनकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है। इससे जुड़े कुछ और लक्षण इस प्रकार हैं:
शरीर के अंगों में कंपन: इसमें आपके शरीर में कंपन होता है और इसकी शुरुआत उंगलियों और हाथों से होती है।
ब्रैडीकिनेसिया: चलने-फिरने की क्षमता में कमी के साथ-साथ बैठने, बिस्तर या कुर्सी से उठने में कठिनाई होने लगती है।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन: खड़े होने पर सिर में हल्कापन और चक्कर आना।
मांसपेशियों में कठोरता: शरीर में मांसपेशियों में अकड़न रहने लगती है, जिससे दर्द होता है और शरीर की गतिशीलता कम हो जाती है।
संतुलन ना बन पाना: शरीर का संतुलन बनाना मुश्किल हो जाता है, जिससे चलने-फिरने में परेशानी होती है।
स्वचालित गति का नुकसान: चेहरे की गति में कमी, जैसे पलक झपकना, मुस्कुराना या चलते समय बाहों को झुलाना।
डिसरथ्रिया: बोलने में कठिनाई और वाक्य बनाने में परेशानी।
डिस्फेगिया: खाना या पानी निगलने में कठिनाई।
लिखने में कठिनाई: लिखने या पेन पकड़ने में परेशानी।
डिप्रेशन: इस रोग में बहुत से लोगों में डिप्रेशन के लक्षण जल्दी सामने आते हैं। यह बीमारी आपको शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से परेशान करती है।
कारण और जोखिम
पार्किंसंस रोग एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है और इसका कोई स्पष्ट कारण अभी नहीं पाया जा सका है। रिसर्च के अनुसार, यह बीमारी हर साल पूरी दुनिया में लगभग 10 मिलियन लोगों को प्रभावित करती है। कुछ मामलों में आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारणों को पार्किंसंस रोग का कारण माना गया है। लेकिन स्पष्ट तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। कुछ कारण जो डॉक्टर बताते हैं, वे इस प्रकार हैं:
आयु: पार्किंसंस रोग ज्यादातर 60 साल की उम्र के बाद सामने आता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, इस रोग के होने का जोखिम बढ़ता जाता है।
परिवार का इतिहास: अगर आपके परिवार में पहले किसी को यह बीमारी है तो आपको इसके होने का जोखिम अधिक हो सकता है।
रसायनों का संपर्क: कुछ काम ऐसे होते हैं, जिनमें व्यक्ति हमेशा रसायनों के संपर्क में रहता है। ऐसे लोगों में यह बीमारी ज्यादा देखी गई है।
लिंग: शोध में पाया गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को पार्किंसंस रोग कम प्रभावित करता है।
पार्किंसंस रोग का निदान और उपचार
इस रोग की पहचान करना मुश्किल है और इसके लिए कोई ऐसा एक टेस्ट नहीं है जिससे पार्किंसंस रोग होने की पुष्टि हो सके। इसके लिए समय-समय पर अलग-अलग प्रकार के शारीरिक और न्यूरोलॉजिकल टेस्ट किए जाते हैं। डॉक्टर स्थिति का निदान करने के लिए नैदानिक कारकों का उपयोग करते हैं। इनमें शामिल हैं:
रक्त परीक्षण
जेनेटिक परीक्षण
डैटस्कैन: दिमाग में डोपामाइन की मौजूदगी का पता लगाना।
एमआरआई (MRI): दिमाग की संरचना की जानकारी के लिए।
पार्किंसंस रोग के इलाज के तरीके
हालांकि पार्किंसंस रोग का कोई ज्ञात इलाज नहीं है, फिर भी कुछ तरीकों से इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है।
दवाएं:
कार्बिडोपा और लेवोडोपा: शरीर में होने वाली कंपकंपी को नियंत्रित करती हैं।
बेंजोडायजेपाइन: झटके से अस्थायी रूप से राहत देती है।
बीटा-ब्लॉकर्स: हाई ब्लड प्रेशर के लक्षण कम करने में सहायक।
सर्जरी:
डीबीएस (डीप ब्रेन स्टिमुलेशन): मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड डाले जाते हैं, जो गति को नियंत्रित करते हैं। यह तकनीक लक्षणों को काफी हद तक कम कर सकती है।
दिनचर्या में बदलाव:
रसायनों के संपर्क में आने वाले कार्यों से बचें।
हल्की-फुल्की एक्सरसाइज को दिनचर्या में शामिल करें।
इन उपायों से पार्किंसंस रोग के लक्षणों को धीमा किया जा सकता है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।