पार्किन्सस: एक ऐसी बीमारी जिसका कोई निश्चित कारण नहीं है लेकिन इलाज की संभावनाएँ अधिक हैं
किसी भी बड़े बड़ी बीमारी की तरह, पार्किंसन रोग की पहचान प्रारंभिक चरण में ही करना महत्वपूर्ण होता है ताकि इस बीमारी के प्रभाव को कम किया जा सके और प्रभावित व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सके।
पार्किंसन रोग के बारे में आमतौर पर हमें उस समय पता चलता है जब हम इसके आसानी से पहचाने जाने वाले मोटर लक्षणों में से किसी एक या सभी को देखते हैं, जिसमें से मुख्य आराम करते समय किसी व्यक्ति के हाथ लगातार कांपना, पूरे शरीर में ऐंठन, धीमापन, चलने में कठिनाई होना, झुकी हुई मुद्रा, और चेहरे पर एक्सप्रेशन में कमी शामिल हैं। हालांकि, हम इन सभी संकेतों के प्रकट होने से पहले भी कुछ प्रारंभिक संकेतों द्वारा इस स्थिति की पहचान कर सकते हैं, जैसे कि बिना कारण अनिद्रा, सूंघने में कठिनाई, नए अवसाद, और कब्ज़। स्थिति का जल्दी पता लगने से यह न केवल उपचार की संभावना को सुधारता है, बल्कि प्रभावित व्यक्ति को बेहतर जीने का अवसर भी प्रदान करता है।
क्या आप को पता हैं? यह सचमुच आश्चर्यजनक है कि चिकित्सा विज्ञान ने पार्किंसन रोग, जिसके सटीक कारण का पता नहीं है, के लिए इतने सारे संभावित उपचार ढूंढ़ निकाले हैं। आनुवंशिकता पार्किंसन रोग के सभी मामलों का लगभग 10-15% का कारण होती है। बाकी 85-90% मामले अचानक उत्पन्न हुए माने जाते हैं।
समय के साथ इस बीमारी की गंभीरता में वृद्धि या प्रगतिशील प्रकृति ने चिकित्सा विज्ञान के लिए इसका अंतिम उपचार का निर्माण करने में बाधाएँ डाल दी हैं।
वर्तमान में जो दवा दी जाती है वह व्यक्ति के शारीरिक कार्यात्मक और संज्ञानात्मक (cognitive) हानि के स्तर और एंटीपार्किंसन दवाओं को सहन करने की क्षमता पर निर्भर करती है।
स्थिति के प्रारंभिक कुछ वर्षों में, दवाओं से बहुत से मरीजों के लक्षणों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन कुछ मामलों में जो अधिक प्रगतिशील हो गये हैं, उनमें विशिष्ट और सटीक सर्जिकल उपचार से बेहतर परिणाम मिलते हैं, जिनमें में से कुछ निम्नलिखित हैं:
- लीज़नल (lesional) सर्जरी: इस सर्जरी में विशिष्ट लक्ष्यीकरण और एब्लेशन द्वारा मस्तिष्क के कुछ गहरे हिस्सों में छोटे और सटीक घाव बनाए जाते हैं, जो व्यक्ति के मोटर गति को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
- डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (Deep Brain Stimulation): 'ब्रेन पेसमेकर' सर्जरी के रूप में लोकप्रियता प्राप्त इस प्रक्रिया ने पार्किंसन रोग से पीड़ित मरीजों को लक्षणों से उबरने में बहुत मदद की है। इस प्रक्रिया में प्रभावित व्यक्ति के मस्तिष्क के कुछ गहरे हिस्सों में इलेक्ट्रोड प्रत्यारोपित किए जाते हैं। ये इलेक्ट्रोड व्यक्ति की छाती में लगाए एक पेसमेकर द्वारा नियंत्रित होते हैं, जो असामान्य आवेगों को नियंत्रित करते हैं जिससे कुछ लक्षणों जैसे की मांसपेशियों में तनाव, धीमापन और कंपकंपी को प्रभावी रूप से कम किया जा सकता है और साथ में दवाओं की आवश्यकता को कम करता है। इस थेरेपी का फायदा यह है कि यह प्रतिवर्ती (reversible) और अनुकूलनीय (adaptable) होती है, जिसके फलस्वरूप रोग की प्रगति के अनुसार इसे समय-समय पर प्रोग्राम किया जा सकता है। जिसके कारण इसके लाभकारी प्रभाव पूरे जीवनकाल स्थायी रहते हैं।
हाल ही में पश्चिम बंगाल के एक 60 वर्षीय बैंकर ने इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस में की गई स्टिमुलेशन सर्जरी की बदौलत वर्षों के बाद पहली बार अपने सपने की छुट्टी का आनंद लेने में सक्षम हुआ।
पार्किंसन मरीज की सर्जरी में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक ही डीप ब्रेन स्टिमुलेशन का भविष्य है, जिसके द्वारा हम विशेष मस्तिष्क क्षेत्रों को उत्तेजित करने के बजाय संपूर्ण मस्तिष्क परिपथों को संशोधित कर सकते हैं। इसके अलावा, इस प्रक्रिया द्वारा प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार हम विद्युतीय इम्पल्स को समायोजित कर सकते हैं और इससे कोई या बहुत कम साइड इफेक्ट्स होते हैं।
जैसे ही आधुनिक प्रौद्योगिकी चिकित्सा के क्षेत्र में वृद्धि कर रही है, फ्रेमलेस रोबोटिक डीप ब्रेन स्टिमुलेशन सर्जरी, ब्रेन पेसमेकर की सैटेलाइट-एडेड रिमोट प्रोग्रामिंग, क्लोज्ड-लूप फीडबैक तकनीक आदि के विकास के साथ डीबीएस प्रक्रिया ओर अधिक प्रभावी और सटीक होती जा रही है।
निष्कर्ष
अगर त्वरित उपचार किया जाये तो पार्किंसन रोग लंबे समय तक बिना परेशानी के निकल सकता है। हालांकि, शुरुआती लक्षणों का पता लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, परंतु दवाइयाँ, सर्जरी (यदि आवश्यक हो) और पुनर्वास (rehabilitation) चिकित्सा के संगम से अच्छे परिणाम मिलते हैं। सही डॉक्टर विशेषज्ञ के साथ, पार्किंसन रोग से प्रभावित व्यक्ति में लगभग सामान्य जीवन और उच्च जीवन गुणवत्ता के साथ जीवन जीने की संभावना बढ़ जाती है।