नींद संबंधी विकार (Sleep Disorders) किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर कैसे प्रभाव डालते हैं?
एक अच्छी रात की नींद शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सही बनाए रखने की कुंजी है, और पर्याप्त नींद की कमी आपके जीवन के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निर्बलता का कारण बन सकती है। आधुनिक समय में नींद संबंधी विकार तेजी से आम होते जा रहें हैं, और विभिन्न अध्ययनों से यह संकेत मिलता है कि कोरोना महामारी के कारण सामान्य आबादी में इन विकारों के व्यापकता में जबरदस्त वृद्धि हुई है।
अनिद्रा सबसे आम निद्रा विकारों में से एक है और इस स्थिति में प्रभावी कामकाज के लिए आवश्यक अधिकतम मात्रा की नींद लेने में असमर्थता शामिल है। इसके मुख्य लक्षणों में सोने में कठिनाई, अच्छी गुणवत्ता की नींद न आना या सुबह जल्दी उठना है।
निद्रा विकार के कारण क्या हैं?
- तनाव: वर्तमान समय में तनाव हर किसी के लिए एक आम चिंता का विषय बन चुका है, चाहे वह काम का स्ट्रेस, परिवार और रिश्तों में परेशानी, या सामाजिक घटनाओं आदि से संबंधित हो। लंबे समय तक और गंभीर तनाव आपकी नींद पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है क्योंकि आरामदायक नींद के लिए मन की आरामदायक स्थिति महत्वपूर्ण होती है।
- मनोवैज्ञानिक विकार (psychological disorders): निद्रा विकार आमतौर पर कई मनोवैज्ञानिक विकारों जैसे चिंता, अवसाद और बाइपोलर डिसऑर्डर (मुख्यतः मेनिया चरण में) से जुड़े होते हैं। नींद और मानसिक बीमारियों में दोतरफ़ा संबंध होता है- मनोवैज्ञानिक विकार व्यक्तियों में अक्सर नींद की समस्याओं का कारण बनते हैं, जबकि कुछ मामलों में, लंबे समय तक पर्याप्त नींद की कमी मनोवैज्ञानिक समस्याओं को जन्म दे सकती है।
- कुछ चिकित्सीय स्थितियाँ या शारीरिक बीमारियाँ निद्रा विकारों से सीधे संबंधित होती हैं, जिनमें हाइपरथायरायडिज्म, टर्मिनल बीमारी और क्रॉनिक दर्दनाक स्थितियाँ, तंत्रिका संबंधी विकार (अल्जाइमर, सिरदर्द, स्ट्रोक, आदि) शामिल हैं।
- प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग: टेक्नोलॉजी के आगमन के साथ, हमारी पीढ़ी इसके अत्यधिक उपयोग के संपर्क में है, और दिन के अधिकांश हिस्सों में इन गैजेट्स के उपयोग से निद्रा विकारों में बढ़ोतरी हुई है। फोन और अन्य डिजिटल गैजेट्स से निकलने वाली रोशनी नींद के आने और नींद-जागने के चक्र (sleep-wake cycle) में भी रुकावट डालती है।
निद्रा विकार और इनके परिणाम
नींद व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है, इसीलिए शरीर के उच्च स्वास्थ्य के लिए कम से कम 8-9 घंटे की नींद जरूरी होती है। नींद की कमी हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह और कई मनोरोग स्थितियों सहित कई नकारात्मक स्वास्थ्य स्थितियों से संबंधित हो सकती है।
- चिंता: चिंता से ग्रस्त लोगों में नींद से संबंधित समस्याएँ काफ़ी आम हैं। हालाँकि, नींद की कमी से भी चिंता के लक्षण महसूस हो सकते हैं। यह दोतरफ़ा चक्र बहुत क्रूर हो सकता है, जिससे नींद और चिंता दोनों समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
- बायपोलर विकार: बायपोलर विकार को मूड स्विंग से परिभाषित किया जाता है जो उदास और उत्साहपूर्ण स्थितियों के बीच एकांतरित होता रहता है। बायपोलर विकार से ग्रसित लोगों को अक्सर अनिद्रा, अनुचित नींद-जागने के चक्र और बुरे सपने सहित नींद संबंधी कई समस्याएँ हो सकती हैं।
- एडीएचडी: एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) एक प्रचलित मनोवैज्ञानिक विकार होता है जो आम तौर पर 6 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों में देखा जाता है। नींद की असामान्यताएं एडीएचडी से जुड़ी हो सकती हैं, और सबूत से पता चलता है कि वे इस स्थिति के पूर्वसूचक या संभवतः योगदानकर्ता हो सकते हैं।
- अवसाद: अनिद्रा और नींद की अन्य समस्याएँ अवसाद का मुख्य लक्षण हो सकती हैं, लेकिन हाल ही में हुई शोध से यह पता चला है कि वास्तव में नींद की कमी अवसाद का कारण बनती है। 21 अलग-अलग अध्ययनों के विश्लेषण में यह पाया गया कि जो लोग अनिद्रा से ग्रसित होते हैं, उनमें उन लोगों की तुलना में अवसाद विकसित होने का खतरा दोगुना होता है, जिन्हें सोने में कोई समस्या नहीं होती है।
- अवैध पदार्थों का उपभोग: मादक पदार्थों के सेवन से संबंधी विकार भी नींद की समस्या उत्पन्न कर सकते हैं। जबकि शराब सीमित मात्रा में आपको शांत करने वाली होती है, परंतु शराब का नशा नींद के पैटर्न को ख़राब कर सकता है। एलएसडी और एक्स्टसी जैसी अवैध दवाएँ भी नींद में रुकावट उत्पन्न करती हैं।
इन मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभावों के साथ, निद्रा विकार एकाग्रता, स्मृति और निर्णय लेने जैसे संज्ञानात्मक कार्यों में क्षति का कारण बन सकते हैं, जो व्यक्ति को दुर्घटनाओं और अन्य जोखिम में डाल सकता है। इससे कार्यस्थल और संबंधित क्षेत्रों में कार्यक्षमता और उत्पादकता में भी कमी आती है।
बचाव के उपाय
निद्रा विकारों को नियमित रूप से कई प्रकार की बीमारियों के लिए परिवर्तनीय जोखिम कारकों के रूप में जाना जाता है। नींद की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करके खराब नींद से जुड़े नकारात्मक परिणामों को कम करने में मदद मिल सकती है। सुधार का मुख्य लक्ष्य नींद चक्र को बाधित किए बिना रात भर सोना होता है।
नींद की स्वच्छता में कुछ दैनिक आदतें और माहौल में बदलाव शामिल होते हैं जो हमें स्वस्थ नींद के पैटर्न को बनाए रखने में मदद करते हैं। इनमें शामिल हैं:
- सोने और जागने का समय निश्चित करना
- शराब, कैफीन और निकोटीन जैसे पदार्थों के सेवन से बचें
- सोने से कम से कम 30 मिनट पहले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बंद कर दें
- अपने शयनकक्ष के माहौल को सोते समय बिना किसी व्यवधान के आरामदायक, ठंडा और रोशनी मंद रखने का प्रयास करें
- सोने से पहले कुछ रिलैक्सेशन तकनीक का अभ्यास करें
- रोज़ाना सुबह शारीरिक व्यायाम करें
डॉक्टर से परामर्श कब करना चाहिए?
यदि आपको नींद की मात्रा और गुणवत्ता को लेकर असंतोष कम से कम 3 महीने के समय में हर सप्ताह में कम से कम 3 रातों में महसूस होता है, और इसके कारणवश कामकाज करने की क्षमता में हानि के साथ मूड में बदलाव होता है, तो विस्तृत नींद मूल्यांकन के लिए किसी विशेषज्ञ से परामर्श करना उचित होता है। किसी भी नींद की समस्या से परेशान व्यक्ति को बिना उचित मार्गदर्शन के ओवर द काउंटर गोलियों या नींद लाने वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। डॉक्टर की सलाह से उचित उपचार योजना अपनाकर आप अपने नींद चक्र को सुधार कर वापस पहले जैसा कर सकते हैं।
This blog is a Hindi version of an English-written Blog - How Do Sleep Disorders Impact the Mental Health of a Person?